- अशोक के शिलालेख भारत, नेपाल, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में पाये जाते है।
- ये लेख उप-महाद्वीप के कुछ भाग में प्राकृत भाषा एवं ब्रहमी लिपी में थे, परन्तु उत्तर पश्चिमी भाग में ये इब्रानी भाषा एवं खरोष्ठी लिपी में थे।
- अशाके के लेखों को चट्टानी शिला लेख (रॉक शिलालेख) एवं स्तंभशिलालेख में वर्गीकृत किया गया है।
- लगभग 400 ई.पू. में पणिनि ने अष्टाध्यायी लिखी जो संस्कृत व्याकरण पर आधारित थी, परन्तु लिपी का सबसे पहले एवं वृहद स्तर पर उपयोग अशोक द्वारा अपने शिलालेखों के लिए किया गया था।
- अशोक नाम केवल माइनर रॉक शिलालेख-I पर से प्राप्त होता है। अन्य शिलालेखों पर उसके दुसरे नाम देवनामप्रिय एवं प्रिर्यदर्शी प्राप्त होते है।
- भाब्रू शिलालेख से यह ज्ञात होता है कि अशोक को बुद्ध, धम्म एवं संघ में पूर्ण विश्वास था।
- रॉक शिलालेख-VII में उसने कहा है कि सभी सम्प्रदायों की इच्छा आत्मा नियंत्रण एवं मन की पवित्रता हैं।
- रॉक शिलालेख-XII में उसने सभी धर्मों के प्रति अपनी समान भावना की धारण व्यक्त की है।
- मुख्य शिलालेख संख्या में 14 हैं वे साम्राज्य की सीमाओं पर मौजूद है।
- जो शिलालेख विवरणीय है वे हैं कंधार का शिलालेख (एकमात्र द्विभाषी शिलालेख) कलिंग शिलालेख (निजी प्रशासन की नीतियां) कल्सी शिलालेख एवं गिरनार शिलालेख
- रॉक शिलालेख XIII सभी शिलालेखों में सबसे लंबा है।
- अशोक नाम का जिक्र मस्की शिलालेख (माइनर रॉक शिलालेख I) में किया गया है।
- रॉक शिलालेख XIII में कलिंग युद्ध की भयावहता का वर्णन है।
- अशोक के 10 स्तंभ लेख प्राप्त हुए है जिनमें से सात मुख्य स्तंभ लेख है एवं तीन गौण स्तंभ लेख है।
- माइनर स्तंभ लेख I को शिस्म शिलालेख भी कहा जाता है। यह संघ के विभाजन के बारे में बताता है।
- रूमिनिदे स्तंभ शिलालेख बुद्ध के जन्म के बारे में बताता है।
- कौशाम्बी के स्तंभ शिलालेख को जहांगीर द्वारा इलाहाबाद स्थानान्तरित कर दिया गया था।
- सोपारा एवं मेरठ के स्तंभ शिलालेखों को फिरोज तुगलक द्वारा दिल्ली स्थानान्तरित कर दिया गया था। उसने अशोक के शिलालेखों की व्याख्या करने का असंभव प्रयास किया।
- 1837 में जेम्सप्रिंसेप ने अशोक के शिलालेखों की व्याख्या की।
अब हम "पूर्व गुप्तकाल" के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे - जिसके प्रथम शासक थे मौर्य सेनापति पुष्यमित्र शुंग।
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